STORYMIRROR

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1 min
331


मैं ढूंढती रही तुझे जलती मशाल में

मिलता नहीं हैं तू मुझे चुभते सवाल में।


ख़ुद की नहीं खबर भी हैं मुझको तो जाने जां

दुनिया भुला चुकी हूँ तुम्हारे ख़्याल में।


रखना क़दम संभाल के कब जाल फेंक दें

घुमते हैं भेड़ियें भी शराफ़त की खाल में।


राजा के साथ रंक भी खड़े हैं कतार में

खेला है नोट का ये फँसे सब जाल में।


जनता का नाम लेकर रोटी जो सेंकते

आफ़त गलें में पड़ गई जीवन मुहाल में।


गठजोड़ कर रहे हैं सभी दुश्मनी भुला

बुरे फँसे विपक्ष सब कैसे धमाल में।


दुश्मन की साख तोड़ दी तोह्फा थमा दिया

रौशन हुआ हैं हिन्द कंँवल हैं मिशाल में।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama