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गज़ल

गज़ल

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क्यों खुशी में भी ग़म का साया है

हर घड़ी ग़म ही मुस्कराया है


कोई सुनता नहीं मेरी आहें

सर पटकना भी मेरा ज़ाया है


धड़कनें भी हुई है कब अपनी

यार दिलबर ने हक़ जमाया है


सुन के आवाज़ तेरी मैं आईं

क्यों लगे तू हुआ पराया है


इस जहां से लड़ी अकेली मैं

साथ तुमने कहां निभाया है


देख सांसें तुझे नहीं थमती

कैसे कह दूं कि दिल चुराया


क्यों लगाता है आग महफ़िल में

क्या कँवल ने तुझे बुलाया है



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