जिस्म की आग पर्दा गिराने लगे
जिस्म की आग पर्दा गिराने लगे
कृष्ण राधा कि गाथा भुलाने लगें
जिस्म की आग परदा गिराने लगें।
रंग चढ़ता नहीं हैं महोब्बत का अब
शान-शौकत से ही दिल लुभाने लगें।
दौड़ आया नया है बताते हमें
आग ऐसी लगी सर छिपाने लगें।
रंग के नाम से दूर रहते थे जो
देख कलियों को होली मनाने लगें।
चार दिन की जवानी सताने लगीं
दर-बदर लोग खंजर चलाने लगें।
खोई खुशियाँ मिले मुझे वापस अगर
दिल बसंती ग़ज़ल गुनगुनाने लगें।
प्यार में आस्था भी जो होती कँवल
सुर में सुर हम भी मिलाने लगें।।

