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Noor N Sahir

Drama Tragedy

2.5  

Noor N Sahir

Drama Tragedy

ग़रीब-यतीम बच्चे की ईद

ग़रीब-यतीम बच्चे की ईद

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मेरी आँखों को फिर रुलाएगी,

इस बरस फिर से ईद आएगी।

जितनी नज़दीक ईद आए है,

उतनी मुझ को फ़िकर सताए है।


इस बरस किस तरह से ईद होगी ?

होगी बस जिस तरह से ईद होगी।

सब ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त करते हैं,

नई चीज़ों से घर को भरते हैं।


कोई दस जोड़ी कपड़े ले आया,

कोई एक जोड़ी भी न ला पाया।

कोई हर एक शै नई लाए,

और पुरानी भी कोई ना पाए।


कोई ख़ुशियों से झूमे जाता है,

और किसी को ये ग़म सताता है।

ईद-गाह किस तरह मैं जाऊंगा ?

कुछ नया ही नहीं क्या पाउँगा ?


लोग हंस देंगे मेरी हालत पर,

पागल समझेगा मुझ को सारा शहर।

या मेरी गुरबतों को समझेंगे,

एक, दो रुपया मुझ को दे देंगे।


आख़िर कैसे पुराने कपड़ों में ?

ईद मनाऊँगा मैले कपड़ों में।

पाँव ख़ाली हैं चप्पलों से मेरे,

नैना सूखे हैं काजलों से मेरे।


ईद के दिन हर एक सजता है,

सर - बा - पाँव नया सा लगता है।

बस अमीरों की ईद है यारो,

क्या ग़रीबों की ईद है यारो ?


मुझ पे रोएगी ईद भी साहिर,

जिस तरह रोए मुफ़लिसी साहिर।

मुफ़लिसी में मैं कैसे जीता हूँ ?

ज़िन्दगी मौत जैसे जीता हूँ।


वो सभी लोग कितने अच्छे हैं ?

ईद पर जिन के साथ अपने हैं।

मैं अकेला हूँ मेरा कोई नहीं,

बस ख़ुदा के अलावा कोई नहीं।


न मेरे पास अच्छे कपड़े हैं,

न मेरे पास मेरे अपने हैं।

हर बरस ईद यूँ ही आती है,

और मुझ को बहुत रुलाती है।


इस बरस इक सवाल है मौला,

क्यूँ मेरा ऐसा हाल है मौला ?

क्यूँ बनाया मुझे ग़रीब इतना ?

देख पाऊँ न जो कोई सपना।


तेरे बंदे ही मुझ पे हंसते हैं,

मुझ को पागल तेरे ही कहते हैं।

मेरी ग़ुरबत से खेलते हैं सब,

यानी इज़्ज़त से खेलते हैं सब।


तू ख़ुदा है ख़ुदी बना है तू,

आज मुझ से कहाँ छुपा है तू ?

सिर्फ़ एक बार देख ले मुझ को,

और क्या-क्या बताऊँ मैं तुझ को ?


आलिमुल-ग़ैब है तू ऐ मौला,

तुझ से किस बात का करूँ पर्दा ?

ऐसी कितनी ही ईदें आई थीं,

मेरी ख़ातिर यज़ीदें आई थीं।


तुझ से कुछ भी

नहीं छुपा मौला,

ईद पर भी मैं

रहता हूं नंगा...।




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