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ग़म छिपाते थे

ग़म छिपाते थे

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जब भी मुझसे नज़रें मिलाते थे,

मेरे सामने मुस्कुराते थे।

थोड़ा सा शर्माते थे,

पता भी नहीं था, कि वे

अपना ग़म छिपाते थे।


उनके बिना हम अधुरे थे,

उन्हें सब पता था,

जानते थे, फिर भी मुझे

सताते थे।

जब भी मुझसे नज़रें मिलाते थे,

मेरे सामने मुस्कुराते थे।


जब वो मेरी बाहों में थे,

कुछ अलग ही लग रहा था।

सुकुन सा, अपनापन,

दूर होने पर अपनी यादों से

सताते थे।

बहुत याद आते थे,

जब भी मुझसे नज़रें मिलाते थे,

मेरे सामने मुस्कुराते थे।


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