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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

घबराहट

घबराहट

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आदमी तूफानों से नहीं, अपनों के विश्वासघातों से घबराता है

आदमी शीशे से नहीं, उसकी बनी झूठी तस्वीरों से घबराता है

आदमी कभी लहरों से नहीं, उसकी दग़ाबाज़ी से घबराता है

पर जीवन में आगे वहीं बढ़ता है, जो लगातार चलता जाता है

वो शख्स सदा ही अपनी राहों में पत्थरों के ऊपर, फूल उगाता है

जो घबराहट, परेशानी की आग में कुंदन सा तपता जाता है

आदमी तूफानों से नहीं अपनों के विश्वासघातों से घबराता है

जीतता वहीं रण जो हर कीचड़ में कमल सा खिलता जाता है

वो पत्थर तो हमेशा बीच दरिया में ही डूब जाते है, साखी

जो घबराहट से घबराकर दरिया में तैरने से मना कर जाता है



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