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Rahul Dwivedi 'Smit'

Classics Fantasy Inspirational

4.9  

Rahul Dwivedi 'Smit'

Classics Fantasy Inspirational

गाँव

गाँव

1 min
405


दुलराती थी अक्सर हमको, जहाँ नीम की छाँव ।

जग में सबसे सुंदर था वह, एक हमारा गाँव ।।


रिश्तों की धारा में सारे, लोग जहाँ बहते थे ।

प्रेम, शांति, सद्भाव नीति से, मिलकर सब रहते थे।

कभी जहाँ पावन थे सबसे, माँ-बापू के पाँव ।

सारे जग में...........।।


सूखी रोटी से मिलकर हम, स्वाद बना लेते थे ।

एक आम की कई फाँक कर, जश्न मना लेते थे ।

हार गया था लालच जिसके, सम्मुख सारे दाँव..

सारे जग में..............।।


घूँघट में लज्जा की मूरत, जहाँ रहा करती थी ।

नित्य नेह की निर्मल धारा, सतत बहा करती थी ।

देवों को भी नहीं सुलभ थी , जिस मंदिर की ठाँव .....

सारे जग में............।।


संस्कार के पुष्प मनोहर, जहाँ खिला करते थे ।

मोर, पपीहे, तोता, मैना , सहज मिला करते थे ।

जहाँ मुँडेरों से आती थी, कौवों की नित काँव।

सारे जग में.............।।


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