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S.Dayal Singh

Abstract

2.8  

S.Dayal Singh

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गाँव तो गाँव है साहिब

गाँव तो गाँव है साहिब

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गाँव तो गाँव है साहिब।

गाँव में छाँव है साहिब।

मखमली पगडंडियाँ गाँव की,

नापने वाले मेरे ही पाँव है साहिब।

पिता को डैड माता को मोम

बना दिया शहर नें,

गाँव में पिता और माँ है साहिब।

बादशाह की हार यकीं है

शह मात के खेल में,

प्यादा भी चलता दाँव है साहिब। 

कोयल की मीठी बाणी रूह को 

सुकून देती है,

कड़वी तो काँव काँव है साहिब।

शहर में जानकार अंजान बनके 

पूछते, "ये कौन है?"

गाँव में घर तक छोड़के बताऐंगे, 

''ये फलां है साहिब।''

आदमी और आदमी में कितना 

फर्क है, 

एक की हाँ में न की झलक है,

दूसरे की न में भी हाँ है साहिब।

--एस.दयाल सिंह --



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