गाँव में बचपन के लम्हे
गाँव में बचपन के लम्हे
वो पल वो लम्हे न भूली हूँ न भूल पाऊँ कभी
क़ैद कर लिए हैं अपने ज़हन में यादों के पल
बचपन बीता जिस गाँव में वहाँ की हर महक
अम्मा क़ुल्फ़ी दिला देखती बच्चों की चहक
वो आस पड़ोस के रिश्तों को ताऊ चाचा दादा कहना
कहीं भी दिखें तो उनका अपनों की तरह टौफ़ी दिलाना
तब माँ बाप नहीं कहते थे किसी से चीज़ मत लेना
वो वक़्त अलग था आज मजबूरन पड़ता ऐसा समझाना
वो चूल्हे जलते घरों से एक अलग सी ख़ुशबू आना
किसी घर भी पहुँच जाओ प्यार से परसी थाली लाना
वो सिलबट्टे पर बनी भिन्न प्रकार की चटनी बनाना
बाबा का भोजन अन्त में बैठे कुत्तों को भी रोटी डालना
वो चूल्हे पे रोटी सेकती ताई माँ चाची की हँसी ठिठोली
उनकी चूड़ियों की खनखन से हाथ की रोटी बनाना
वो अम्मा का सबको सब्ज़ी और रोटी घी से तर खिलाना
मना करने पर सबको डाँट कर एक और रोटी तंदुरुस्त बनाना
न भूली हूँ न भूल पाऊँ कभी ये प्यारे खट्टे मीठे
अपने गाँव में बीते लम्हों का तराना
जीवन्त हैं ये ज़िन्दगी के लम्हे हमेशा
जब तक रहेगा चलता रहेगा जीवन का सफ़र सुहाना।
