गाँव कस्बे के मेहनती लड़के
गाँव कस्बे के मेहनती लड़के
गाँव कस्बे के मेहनती, लगनशील लड़के भी
पराये धन की तरह होते हैं।
एक दिन छोड़कर छोड़कर चले जाते हैं
अपना सब घर-बार !
वो छोड़ जाते हैं बचपन की अविस्मरणीय यादें,
जो गाँव की सोंधी मिट्टी में बनाई थी !
वो धान की सुनहली बालियां !
वो आलू के मोढदार खेत!
वो आम का बगीचा, वो नीम का पेड़ !
वो जामुन की टहनी , वो कदंब की झुकी डालियाँ
सबकुछ सुनी- सुनी सी लगने लगती है !
गाँव की वो ठाकुरबाड़ी !
जलकुम्भी से ढकी वो पो खर !
वो उफान मारती नहर
और मेरे गाँव के सामने से गुजरने वाली वो सड़क !
मुझे पहुंचाकर खुद वो रास्ता भूल जाती है!
बरसात के वो दिन !
वो कागज की कस्ती,
उन आवारागर्द दोस्ती की मण्डली संग मस्ती !
वो गाँव की बुढ़िया दादी !
और न जाने क्या-क्या ?
सबकुछ पीछे छुट जाते हैं !
सचमुच गाँव के मेहनती
लगनशील लड़के पराये धन की तरह होते हैं !
जो परिस्थितिवश ही सही
अपनी माटी से रुखसत कर जाते हैं !
