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Brijlala Rohanअन्वेषी

Action Classics Inspirational

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Action Classics Inspirational

गाँव कस्बे के मेहनती लड़के

गाँव कस्बे के मेहनती लड़के

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गाँव कस्बे के मेहनती, लगनशील लड़के भी 

पराये धन की तरह होते हैं।

एक दिन छोड़कर छोड़कर चले जाते हैं

अपना सब घर-बार !


वो छोड़ जाते हैं बचपन की अविस्मरणीय यादें, 

जो गाँव की सोंधी मिट्टी में बनाई थी !

वो धान की सुनहली बालियां ! 

वो आलू के मोढदार खेत!

वो आम का बगीचा, वो नीम का पेड़ !


वो जामुन की टहनी , वो कदंब की झुकी डालियाँ 

सबकुछ सुनी- सुनी सी लगने लगती है !

गाँव की वो ठाकुरबाड़ी !

 जलकुम्भी से ढकी वो पो खर !


वो उफान मारती नहर 

और मेरे गाँव के सामने से गुजरने वाली वो सड़क !

मुझे पहुंचाकर खुद वो रास्ता भूल जाती है!

बरसात के वो दिन !


वो कागज की कस्ती,

उन आवारागर्द दोस्ती की मण्डली संग मस्ती !

वो गाँव की बुढ़िया दादी !

और न जाने क्या-क्या ?

सबकुछ पीछे छुट जाते हैं !


सचमुच गाँव के मेहनती 

लगनशील लड़के पराये धन की तरह होते हैं !

जो परिस्थितिवश ही सही

अपनी माटी से रुखसत कर जाते हैं !


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