गाँव और शहर के रिश्ते
गाँव और शहर के रिश्ते
गाँवों में रिश्ते महकते थे मिट्टी
की महक से ....
गाँवों में रिश्ते चहकते थे चिड़ियों
की चहक से ..…
गाँव में रिश्ते पकते थे चूल्हे की
दहक से .....
अब शहरों में रिश्ते कहाँ बन पाते हैं ?
यहाँ तो पड़ोस के फ्लैट से भी
कौन निभाता है ........
मिट्टी की महक कंक्रीट की अट्टालिका के
जंगल से कहाँ आती है ...
दस मंजिला ईमारत पर कहाँ चिड़िया
चहकने आती है ....
और धीमी आँच पर यहाँ कौन खाना बनाता है
इस शहर में इंस्टैंट का जमाना है ....
गाँव की फुरसत यहाँ नहीं मिल पाती ...
भागमभाग की दिनचर्या में ये शहर
अपनों को भुला रहा है ....
पर ये गाँव तो ..
आवाज़ देता है अपनों को और
अजनबियों से भी रिश्ता बनाता है ..।