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Sheetal Jain

Tragedy

4.5  

Sheetal Jain

Tragedy

एक वृक्ष की गाथा

एक वृक्ष की गाथा

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391


है वृक्ष यह प्यारा,

सुना रहा अपनी कहानी 

बात है यह पुरानी 

मैं चिनार का वृक्ष 

रहता था अलमस्त 


मुझको मिलता स्वच्छ हवा और पानी 

सूरज का मैं स्वागत करता,

पक्षियों का कलरव सुनता 

हर राहगीर को छाया देता

एक अलग ही सकुन था मिलता।


मुग़ल बादशाह जहांगीर ने देखा 

मुझको फिर काश्मीर को सौंपा 

काश्मीर को मैंने जन्नत बनाया 

दूर दूर से दर्शक आते 

चित्रकार भी चित्र बनाते 


थी गिलहरी मेरी प्रिय साथी 

कुछ विदेशी मुझको भाती

दिन भर साथ समय बिताती

कभी इधर फुदक कभी उधर फुदक

रोज़ नए नए करतब दिखाती


अपनी मुद्राओं से मुझे रिझाती 

मुझको भी सब यह अच्छा लगता 

तंग उन्हें होने नहीं देता 

ख़ुशहाली से पूरा जंगल सजता।


नज़र लगी किसी की भाई

करने लगे धडाधड निर्माण कार्य,

कहीं काटे वृक्ष बेशुमार 

कैसे इन्हें समझाऊँ 

विपदाएँ यह संग है लाती 


धीरे-धीरे हमारी हस्ती मिटाती,

दोस्त हमारे जुदा कर जाती

 मैं चिनार का वृक्ष 

सोच में पड़ा हूँ आज

जहांगीर, अबू अल हसन फिर कहाँ से लाऊँ।।


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