एक टीचर दोस्त को आखिरी सलाम
एक टीचर दोस्त को आखिरी सलाम
प्रोफेसर, टीचर, मास्टर या
सच्चे दोस्त थे मेरे गुप्ता सर
उत्साह भरी मुस्कुराहट से
दिल में बसते थे गुप्ता सर
राज़ बाँटते, सलाह भी लेते
मिटा देते थे उम्र का फ़ासला
उनको देख भर लेने से मुझे
काफ़ी बढ़ जाता था हौसला
अपनी पर्सनल डायरी में अक्सर
उनकी कई बातें लिखता था मैं
कई कई दिन नहीं भी मिलते थे
पर उनके बारे में सोचता था मैं
सुबह बजने वाली घंटी दरवाजे की
माँ के साथ होने वाली उनकी चर्चा
कभी खेती, कभी राजनीति की
किचन गार्डन से बचता उनका खर्चा
यादों की किताब काफी मोटी है
अभी बस थोड़े में सलाम लिखता हूं
आपके अनंत सफर पर मित्र सर जी
थोड़ी भावनायें आपके नाम लिखता हूं।