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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

बर्बाद ए मोहब्बत है

बर्बाद ए मोहब्बत है

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दिल के साथ वेवफाई करती रही,

एकबार भी कहा होता जिंदगी में,

जज्बात से नहीं दौलत से प्यार है,

झूठे प्यार में जिंदगी लुटती रही।


बर्बाद ए मोहब्बत है इस जमाने में,

लोग साथ नहीं देते लगे है फंसाने में,

सारी खुशियां मिट जाती हैं प्यार में,

बर्बाद-ए-जिंदगी है इस जमाने में।


जिंदगी की राह भटक कर दीवाना हुआ,

प्यार में खुदा भी जिंदगी से बेगाना हुआ,

प्यार के बिना जिंदगी है ऐसा भी नहीं,

प्यार के बिना जिंदगी में वीराना हुआ।


उसकी हर अदा का दिलदार बन बैठा था,

प्यार को तलबदार जिंदगी समझ बैठा था,

मालूम न था उस मोड़ पर बिछड़ना होगा,

जिस राह को मंजिल समझ बैठा था।


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