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Bhawani shankar

Tragedy Others

4.7  

Bhawani shankar

Tragedy Others

फीका शहर

फीका शहर

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एक खेत में उजाला, कुछ दिन से,

हर रोज हो रहा है

नहीं, दीवाली नहीं है वहाँ

कोई मेहनत के बीज बो रहा है

वो सवेरे ही उठ गया है

पर ये सवेरा उसके लिए कहाँ नया है

वो हर दिन वैसे ही जागता है

टूटी मेड़ बनाने को भागता है

वो पानी सब में ध्यान से डालता है

उन पौधों को बड़े प्यार से पालता है

कभी सर्द में पौधों को तिरपाल ओढ़ाता है

तो कभी तपती धूप में बारिश की गुहार लगाता है

वो यत्नों से अपनी पैदावार बचाता है

और फिर भूख से मरते इंसान बचाता है


वो धान लेकर अमीरों के शहर जाता है

पर वहां वो मेला उसे कहां भाता है<

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मेहनत को कम दामों में, बेच आता है

अब खुद क्या खाए, ये दर्द सताता है

सरकारें आंखें मूंद लेती है

क्योंकि वो तो उनके घर की खेती है

कोहरा नहीं, ये तोहमतों की गर्द है

और तुम्हें लगता है कि कड़ाके की सर्द है

अरे पाला मार गया, उसका ये दर्द है

पर उनके लिए आवाज दबाने वाले ही मर्द है

देखते ही देखते अपनी आवाज खो रहा है

इन सियासतों के ग्रंथों में तार तार हो रहा है 

तुम जागना नहीं क्योंकि किसान रो रहा है

उसकी गिरवी जमीन से हाथ धो रहा है

वो नादान, जीवन मिटाने को मजबूर हो रहा है

वो देखो, प्यारा हिन्दुस्तान सो रहा है


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