अधिकार
अधिकार
क्या उसका कुछ अधिकार नहीं
क्या उसका ये परिवार नहीं
रहती है क्यो हर बार वहीं
क्या उसका ये संसार नहीं
वो साथ निभाना चाहती है
हर कदम मिलाना चाहती है
चौखट पर बैठी राह तके
ये रीत मिटाना चाहती है
वो एक अकेली सारे दिन
हर काम तुम्हारा क्यों ही करे
लाओ जो तुम बंडल गिन गिन
वो मुफ्त तुम्हारा नीर भरे
तुम पसर के बैठो सोफे पर
वो ताने सुनने से भी डरे
इस नरक के जीवन से बेहतर
वह लगा के फंदा झूल मरे
पर है ताकत उस आभा में
जो फिर भी सब कुछ भूल रही
क्या उसको सब मालूम नहीं
वो शक्ति रुप है भूलो मत
बिन उसके ये संसार नहीं
वो नारी है वो जननी है
वो निज पैरों की धुल नहीं
आदि शक्ति का रुप यही
कुटुम्ब को दोष लगाते हो
तुम खुद से तो शुरुआत करो
आजादी दो बेटों सी तुम
उस आध्या को स्वच्छंद करो