STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

4  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

न था

न था

1 min
368

दूसरों पर तो मुझे ऐतबार न था

मित्र तू तो बिल्कुल लाचार न था

फिर क्यों तोड़ दी तूने दोस्ती मेरी ?

इतना में भी ज़माने में बेकार न था


क्या भूल हुई ? कौनसी खता हुई ?

तेरे मन मे मेरी जगह क्यों कम हुई ?

मित्र इतना बुरा तो मेरा बर्ताव न था

आंखों में मेरे तेरे सिवा परिवार न था


तू मुँह से बोल देता,दूर चला जाता,

में तेरे जितना मित्र समझदार न था

मेरी एकमात्र दौलत तू थी,वो लूट गई

तेरे बिना मेरा कोई घर-संसार न था


ऐसी भी तूने मन मे क्या ठान ली है,

सावन में मुझे सूखे की बरसात दी है,

तेरे बिना जीवन मे कोई चमत्कार न था

मित्र तेरे बिना मेरा कोई उपहार न था


तूने फिर भी मुझे जिंदा छोड़ दिया

तेरे बिना जबकि सांसो का तार न था

भूल से गर कोई खता हुई माफ कर दे

तेरे बिना साखी का कोई संसार न था।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy