न था
न था
दूसरों पर तो मुझे ऐतबार न था
मित्र तू तो बिल्कुल लाचार न था
फिर क्यों तोड़ दी तूने दोस्ती मेरी ?
इतना में भी ज़माने में बेकार न था
क्या भूल हुई ? कौनसी खता हुई ?
तेरे मन मे मेरी जगह क्यों कम हुई ?
मित्र इतना बुरा तो मेरा बर्ताव न था
आंखों में मेरे तेरे सिवा परिवार न था
तू मुँह से बोल देता,दूर चला जाता,
में तेरे जितना मित्र समझदार न था
मेरी एकमात्र दौलत तू थी,वो लूट गई
तेरे बिना मेरा कोई घर-संसार न था
ऐसी भी तूने मन मे क्या ठान ली है,
सावन में मुझे सूखे की बरसात दी है,
तेरे बिना जीवन मे कोई चमत्कार न था
मित्र तेरे बिना मेरा कोई उपहार न था
तूने फिर भी मुझे जिंदा छोड़ दिया
तेरे बिना जबकि सांसो का तार न था
भूल से गर कोई खता हुई माफ कर दे
तेरे बिना साखी का कोई संसार न था।
