प्रेम तुम्हारा
प्रेम तुम्हारा
कैसे पाऊँ प्रेम तुम्हारा?
मन के भाव मलिन पड़े हैं,
हृदय के दीपक बुझे पड़े हैं,
काम- क्रोध- लोभ और मत्सर,
इनसे मैं हूँ हारा।।
कैसे पाऊँ प्रेम तुम्हारा?
दुनिया के इस रंगमंच में ,
भव-जाल रूपी माया-जाल में,
जितना भी रखता पग सँभलकर,
भीषण बहती धारा।।
कैसे पाऊँ प्रेम तुम्हारा?
जर्जर होती जाये काया,
जीवन में है अंधकार छाया,
अब तो तरस खाओ "नीरज" पर,
तुम ही एक सहारा।।
कैसे पाऊं प्रेम तुम्हारा?
