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सौरभ मिश्रा

Tragedy

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सौरभ मिश्रा

Tragedy

माँ मैं नहीं मेला जाऊंगा

माँ मैं नहीं मेला जाऊंगा

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अपने पसंदीदा कुल्फी चाट ,

भले ही ना मैं खाऊंगा।

तुम दीदी बाबा संग चली जाना ,

माँ, मैं नहीं मेला जाऊंगा।।


बीते वर्षों के वो मेले ,

मुझे अब भी याद आते हैं।

मेले बीत जाने के बाद ,

सड़कें मैदानें कहो क्यूँ गंदे मिल जाते हैं।।


तो क्या हुआ जो ,

मैं ऊँचे झूले ना झूलुँ।

पर माँ इश धरती को अस्वच्छ करने का ,

पाप अपने सर कैसे ले लुँ।।


मेले में ठेले दुकान वाले ,

गन्दगी खुशी से फैलाते हैं।

अनजाने में, माँ की पूजा में वो ,

माँ के आँचल को मैला कर जाते हैं।।


माँ उन जूठे दोने पत्तलों पे ,

टिकती ना पाँव किसी की एक वक्त को।

सोंचो फिर उन गंदे ढेरों को कैसे ,

अपने सीने पे है झेलती वो।।


पर माँ अब वादा करो तुम भी ,

मेले में पूजा को जो तुम जाओगी।

इस पावन धरा पर अब ,

एक तिनके भर भी गन्दगी न फैलाओगी।।


मेरे लिए खिलौने भी ,

अब न तुम लेते आना।

प्लास्टिक के अभिशाप में ,

भागी न अपनी देते आना।।


माँ मैं तेरा लल्ला हूँ ,

कभी न तुझको सताउँगा।

पर तुही बोल एक माँ को हँसाकर ,

दूसरी को कैसे रुलाउँगा।।


माँ की सुन्दरता को ,

में ना कभी खोने दूँगा।

अपनी इस धरती को ,

अब और अस्वच्छ न होने दूँगा।।



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