माँ मैं नहीं मेला जाऊंगा
माँ मैं नहीं मेला जाऊंगा
अपने पसंदीदा कुल्फी चाट ,
भले ही ना मैं खाऊंगा।
तुम दीदी बाबा संग चली जाना ,
माँ, मैं नहीं मेला जाऊंगा।।
बीते वर्षों के वो मेले ,
मुझे अब भी याद आते हैं।
मेले बीत जाने के बाद ,
सड़कें मैदानें कहो क्यूँ गंदे मिल जाते हैं।।
तो क्या हुआ जो ,
मैं ऊँचे झूले ना झूलुँ।
पर माँ इश धरती को अस्वच्छ करने का ,
पाप अपने सर कैसे ले लुँ।।
मेले में ठेले दुकान वाले ,
गन्दगी खुशी से फैलाते हैं।
अनजाने में, माँ की पूजा में वो ,
माँ के आँचल को मैला कर जाते हैं।।
माँ उन जूठे दोने पत्तलों पे ,
टिकती ना पाँव किसी की एक वक्त को।
सोंचो फिर उन गंदे ढेरों को कैसे ,
अपने सीने पे है झेलती वो।।
पर माँ अब वादा करो तुम भी ,
मेले में पूजा को जो तुम जाओगी।
इस पावन धरा पर अब ,
एक तिनके भर भी गन्दगी न फैलाओगी।।
मेरे लिए खिलौने भी ,
अब न तुम लेते आना।
प्लास्टिक के अभिशाप में ,
भागी न अपनी देते आना।।
माँ मैं तेरा लल्ला हूँ ,
कभी न तुझको सताउँगा।
पर तुही बोल एक माँ को हँसाकर ,
दूसरी को कैसे रुलाउँगा।।
माँ की सुन्दरता को ,
में ना कभी खोने दूँगा।
अपनी इस धरती को ,
अब और अस्वच्छ न होने दूँगा।।
