चांद बन बैठा है आज मेरा बैरी
चांद बन बैठा है आज मेरा बैरी


चांद बन बैठा है आज मेरा बैरी,
कोई जाकर उसे समझाता क्यूं नहीं।
मेरे महबूब की तारीफ़ में,
मैंने तो बस कहा था।
ऐ मेरे महबूब, तू उस चांद से भी सुंदर है।
नहीं कोई खामियां तेरे अन्दर है।
तू थाम ले जो हाथ मेरा,
तो दरिया भी लगता समंदर है।
अब बताओ तुम ही,
क्या कहा मैंने कुछ गलत ?
क्या दी मैंने किसी को बददुआ ?
मैंने तो बस की थी उसके खातिर दुआ।
तो फिर कोई पूछे उससे,
क्यूं ख़ामोश है वो , क्यूं है नाराज ?
क्या किया है मैंने कोई गुनाह ?
या छीना है मैंने उसका सरताज है।
नहीं, वो तो आज भी है ,
लाखों आशिकों का दर्पण।
आज भी बिछड़े हुए आशिक़,
देखते उसमे अपने महबूब का चेहरा।
मैंने तो बस कह दिया वो, जो था।
तो बताए वो मुझे,
इस सच से उसे क्यूं है ऐतराज।
मैंने तो बस कहा था,
कि मेरा महबूब उस चांद सुंदर है।
नहीं कोई खामियां उसके अंदर है।
वो थाम ले जो हाथ मेरा,
तो दरिया भी लगता समंदर है।