यादों की लाइब्रेरी
यादों की लाइब्रेरी
जो मैं गुजर रहा था कल,
यादों की एक लाइब्रेरी से।
मिली मुझे किताबें कई,
बिखरी पड़ी थी मेज पे ।।
देखा कुछ एक को तो,
थी उनमें एक इतिहास की।
देश-दुनिया से मिली नहीं बातें एक भी,
बातें थी उनमें अपने बीते एहसास की।।
ज्यों ही पलटा उसके पन्नों को मैंने,
मिली मुझे उनमें रातें भी कई।
खुशियां और गम के उस पिटारे में,
कुछ थी पुरानी, तो कुछ बातें थी नई ।।
देखे हमने उनमें थे,
रंग बिरंगे कितने ही चेहरे ।
कुछ रिश्ते थे फीके,
कुछ थे सागर से गहरे ।।
यादें कई अपने फिर,
देख उनको ताजा हुए।
कहीं मुसकुरा दिए,
तो कहीं आंसू समंदर से ज्यादा हुए ।।
दिखी मुझे अपनी सब,
उलटी सीधी तस्वीर भी।
कभी था मैं कलाम,
कभी बना संतावन का मंगल मैं ही ।।
मन मेरा कहने आया फिर मुझे,
यादों की इस लाइब्रेरी से निकल चलो।
छोड़ पीछे इन बवंडरों को,
जीवन के राहों पर अब चल चलो ।।
