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Rashmi Sinha

Tragedy

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Rashmi Sinha

Tragedy

रावण

रावण

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आज के रावण,

गजब ढा रहे हैं,

एक सर----

सौ---,हजार, कुकृत्य करते जा रहे हैं।

पहले का दशानन था विद्वान,

पर ये विद्वतजन तो,

विद्वता को भी कलंकित कर पा रहे हैं।

रावण की सोच थी कलुषित,

पर ये निर्लज्ज, अधम, रावण!!

अबोध बालिका हो या बालक,

उफ्फ! उसके साथ भी-----

दस सिर वाला रावण भी शायद,

मूंद लेता अपने बीस नेत्र,

उनकी कुत्सित चेष्टाओं को देख,------

दानव तो तब नाम के थे,

आज के रावण तो,

हत्या, बलात्कार, पर-स्त्री समागम,

रिश्वतखोरी ,गाली---

कोई ऐसा अपराध नही,

जो न कर पा रहे हों----

वो रावण तो था एक,

पर यहां तो पूरा समाज,

राक्षस रावणों से युक्त,

राम भी अपने को असहाय पा रहे हैं,

नही कोई विभीषण या जटायु,

या वानर सेना, राम की मदद को,

अट्टाहास करते रावण----

हर दिशाओं में स्वर्ण लंका,

बनाये जा रहे है।

किस राम के 'शर' में है हिम्मत,

इन रावणों की नाभि का अमृत सुखाने की----

असहाय पड़ते, ईमानदार राम ही,

'शर' से नही-----

पॉइंट ब्लैंक रेंज से,

उड़ाए जा रहे हैं।


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