STORYMIRROR

Kailash Jangra 'Banbhori' कैलाश जांगड़ा 'बनभौरी'

Tragedy

3  

Kailash Jangra 'Banbhori' कैलाश जांगड़ा 'बनभौरी'

Tragedy

एक नारी हूँ मैं

एक नारी हूँ मैं

1 min
331

एक नारी हूँ मैं

मुरौवत की लबालब रहमदिली हूँ मैं ,

नवाज़ता संकुचित समाज मुझे क़ब्र में ।

तोहफ़ा है अदीबों का मुझे शब्दों का ,

फ़र्ख अदीबों पर-उनके शब्दों की अक्स हूँ मैं ।।

हाँ , एक नारी हूँ मैं ।

बेढंग है लोगों का लबोलहजा मुझ पर ,

सही नहीं इंसान है भगवान है वो ,

जिसे फ़िक्र मेरी लोग नहीं ।।

हाँ , एक नारी हूँ मैं ।

शहजादा स्वंय को बताते ,

झूठ की दोहर ओढ़ते ,लौह है हम नारी भी , 

चाहे अभी ख़ौले खून से अभिमान तोड़ते ।

सरहद की पार इन्होंने , आया इनका काल अब ,

संकुचितों का रहेगा न दुनिया से वास्ता ,

सिमटेंगें चंद अंगुली में अब ।।

हाँ , एक नारी हूँ मैं ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy