एक नारी हूँ मैं
एक नारी हूँ मैं
एक नारी हूँ मैं
मुरौवत की लबालब रहमदिली हूँ मैं ,
नवाज़ता संकुचित समाज मुझे क़ब्र में ।
तोहफ़ा है अदीबों का मुझे शब्दों का ,
फ़र्ख अदीबों पर-उनके शब्दों की अक्स हूँ मैं ।।
हाँ , एक नारी हूँ मैं ।
बेढंग है लोगों का लबोलहजा मुझ पर ,
सही नहीं इंसान है भगवान है वो ,
जिसे फ़िक्र मेरी लोग नहीं ।।
हाँ , एक नारी हूँ मैं ।
शहजादा स्वंय को बताते ,
झूठ की दोहर ओढ़ते ,लौह है हम नारी भी ,
चाहे अभी ख़ौले खून से अभिमान तोड़ते ।
सरहद की पार इन्होंने , आया इनका काल अब ,
संकुचितों का रहेगा न दुनिया से वास्ता ,
सिमटेंगें चंद अंगुली में अब ।।
हाँ , एक नारी हूँ मैं ।।