ख़ोज
ख़ोज
जिन ख्वाबों में खोया हूँ मैं , उनका कोई दर्पण नहीं ।
जिस बदन का बना हूँ मैंं , उसका कोई मोल नहीं ।।
जिस प्रेम की ख़ोज में हूँ मैं , उसका कोई अंत नहीं ।
जिस ईश्वर की ख़ोज में हूँ मैं ,उसका कोई नाम नहीं ।।
जिन ख्वाबों में खोया हूँ मैं , उनका कोई दर्पण नहीं ।
जिस बदन का बना हूँ मैंं , उसका कोई मोल नहीं ।।
जिस प्रेम की ख़ोज में हूँ मैं , उसका कोई अंत नहीं ।
जिस ईश्वर की ख़ोज में हूँ मैं ,उसका कोई नाम नहीं ।।