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Kailash Jangra 'Banbhori' कैलाश जांगड़ा 'बनभौरी'

Others

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Kailash Jangra 'Banbhori' कैलाश जांगड़ा 'बनभौरी'

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एक नारी हूँ मैं

एक नारी हूँ मैं

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एक नारी हूँ मैं ।

मुरौवत की लबालब रहमदिली हूँ मैं,

नवाज़ता संकुचित समाज मुझे क़ब्र में।

तोहफ़ा है अदीबों का मुझे शब्दों का,

फ़र्ख अदीबों पर-उनके शब्दों की अक्स हूँ मैं ।।

हाँ, एक नारी हूँ मैं ।


बेढंग है लोगों का लबोलहजा मुझ पर, सही नहीं ।

इंसान है-भगवान है वो, जिसे फिक्र मेरी लोग नहीं ।।

हाँ, एक नारी हूँ मैं ।


शहजादा स्वयं को बताते, झूठ की दोहर ओढ़ते,

लौह है हम नारी भी, चाहे अभी ख़ौले खून से अभिमान तोड़ते ।

सरहद की पार इन्होंने, आया इनका काल अब,

संकुचितों का रहेगा न दुनिया से वास्ता, सिमटेंगे चंद अंगुली में अब ।।

हाँ, एक नारी हूँ मैं ।।


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