वतन
वतन
दिल में है उमंग, वतन के वास्ते।
बढ़ेंगे हर-क़दम, हर-दम माँ की वास्ते ।।
चीत्कार उठी थी, उस अंधेरी रात को,
जब मित्र बन, शत्रु घर आया था ।
सो रही, धरती माँ की संतानों को,
अपने तोपों के गोलों से उड़ाया था ।।
कर सिर कलम शत्रु का, अपने जवानों ने दिखलाया था ।
हम भी कोई कम नहीं, हिमालय भांति हम खड़े हैं ।।
आ जाये कोई आतंक कहीं से, हम रक्षा हेतु अड़े हैं ।
अब कोई गलती नहीं, शत्रु का धड़ लिये खड़े हैं ।।
देख उठेगा, फूल उठेगा, झूम उठेगा देश ये सारा,
मौत की नींद सो जाएगा, जब दुश्मन हमारा ।
दिल में है उमंग, वतन की वास्ते ।
बढ़ेंगे हर-क़दम, हर-दम माँ की वास्ते ।।