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Kailash Jangra 'Banbhori' कैलाश जांगड़ा 'बनभौरी'

Abstract Others

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Kailash Jangra 'Banbhori' कैलाश जांगड़ा 'बनभौरी'

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भटकते रास्ते

भटकते रास्ते

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बावरा हो रहा यूँ ही, यौवन के उन्माद से तू ।

यत्न किए लेकिन, नादान भटक गया मूढ़ जग में तू ।।


प्रासाद तू समझता, खंडहर है वह।

कोई प्रत्याशा न कर, तेरे नीड़ विनाश की चंचलता है यह।।


अच्छा है बेसुध होना, इतना नहीं कि राह भटकना ।

भटके हो जिस कारण तुम, वह जड़ उखाड़ना ।।


थाम लेना पग के लचीले वेग अपने, महज़ दूरी वास्ते ।

दूरी यही अहसास हो तुम्हें, भटके किसी और के वास्ते ।।


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