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Kailash Jangra 'Banbhori' कैलाश जांगड़ा 'बनभौरी'

Abstract Others

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Kailash Jangra 'Banbhori' कैलाश जांगड़ा 'बनभौरी'

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आवाज़

आवाज़

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कथन मेरा था इस दुनिया को,

छोड़ दे इन सांसारिक लिपासा को,

अंबर भी क्या, प्रकाश भी न बच पाए,

ऐसा संसार तू न बनाए ।

कहना व्यर्थ मेरा इसलिए,

न मान, न मान 

मेरी आवाज़ तू न मान ।।


क्रांति में घुल जा,

अनंत जीवन सफ़ल कर जा,

बेगान नहीं, बेगार नहीं,

धधक है, सुलगानी है,

अपना खून, घी-पसीना है,

पर व्यर्थ ...

न मान, न मान,

मेरी आवाज़ तू न मान ।।


लिपासा है, उपभोग कर,

अवनति कर, उन्नति कर,

सत्य को भूल न जाए,

सांसारिक जाल में फंस न जाए,

त्यागेगा जिस्म अपना, वो समय,

दिलाएगा पुनः याद तेरे संशय,

पहले न मानी, तूने मेरी,

अब है देरी, अब है देरी,

व्यर्थ मेरी, यूँ ही बखानी ।

न मान, न मान 

मेरी बात तू न मान,

मेरी आवाज तू न मान ।।


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