आवाज़
आवाज़
कथन मेरा था इस दुनिया को,
छोड़ दे इन सांसारिक लिपासा को,
अंबर भी क्या, प्रकाश भी न बच पाए,
ऐसा संसार तू न बनाए ।
कहना व्यर्थ मेरा इसलिए,
न मान, न मान
मेरी आवाज़ तू न मान ।।
क्रांति में घुल जा,
अनंत जीवन सफ़ल कर जा,
बेगान नहीं, बेगार नहीं,
धधक है, सुलगानी है,
अपना खून, घी-पसीना है,
पर व्यर्थ ...
न मान, न मान,
मेरी आवाज़ तू न मान ।।
लिपासा है, उपभोग कर,
अवनति कर, उन्नति कर,
सत्य को भूल न जाए,
सांसारिक जाल में फंस न जाए,
त्यागेगा जिस्म अपना, वो समय,
दिलाएगा पुनः याद तेरे संशय,
पहले न मानी, तूने मेरी,
अब है देरी, अब है देरी,
व्यर्थ मेरी, यूँ ही बखानी ।
न मान, न मान
मेरी बात तू न मान,
मेरी आवाज तू न मान ।।
