गरज़ मेघ की
गरज़ मेघ की
अंक पुष्प खिला न, न प्यासी हर प्यास बुझी
मरुथल हो चला उर, ज़र्रे को क़ीमत जान पड़ी
बिनती कर जन साग़र स, इंह बरस न कड़क पड़ी
बहा नीर अपना तू , न गरज़ मेघ की कर्ण पड़ी
अक्षुओं की चक्षु में, काल बसेरा डल गया
काल अंधियार, काल समय, काल-युग खा गया
काल रंग काल स्वयं, अत्याचार-भ्रष्टाचार कर आगमन
ढूंढ मिलूं न, न कर्ण पड़े, यह गरज़ मेघ की तू सुन पड़े
विधि कठोर सच आगमन हो, रग रक्त संचार हो
सूख धरा फट रही, ज़र्रे को कीमत जान पड़ी
बिनती करे जन सागर स, इंह बरस न कड़क पड़ी
बहा नीर अपना तू , न गरज़ मेघ की कर्ण पड़ी
कृषक कृषि चिंतन, दौलत न मुझे सुहाए
पिंड नहीं-नगर उजड़ भय आया, काल-युग खा गया
काल रंग काल स्वयं, अत्याचार-भ्रष्टाचार कर आगमन
ढूंढ मिलूं न, न कर्ण पड़े, यह गरज़ मेघ की तू सुन पड़े।
