एक कटु सत्य
एक कटु सत्य
( मुठ्ठी भर नारीयों का )
कितने रूप तेरे नारी
करती स्वागत पुत्र का गर्भ में
करती विनाश पुत्री का गर्भ में
कितने रूप तेरे नारी
करती विरोध दहेज प्रथा का
करती नहीं विवाह बिन
दहेज पुत्र का
कितने रूप तेरे नारी
लगाती नारा
नारी मुक्ति का
दिलाती मुक्ति नारी को
जला शरीर नारी का
कितने रूप तेरे नारी
फूटता रोम रोम से झरना
प्यार का, पुत्री के लिये
फूटता रोम रोम से लावा
ज्वालामुखी का, पुत्रवधु के लिये
कितने रूप तेरे नारी
करती सेवा माँ का,
तन मन धन से
करती तिरस्कार सासू माँ का,
तन मन धन से।
कितने रूप तेरे नारी....
