STORYMIRROR

Dr. Vijay Laxmi

Classics

4.5  

Dr. Vijay Laxmi

Classics

एक कन्या शकुन्तला

एक कन्या शकुन्तला

1 min
390



चन्द्र वंशी राजा दुष्यंत जाते हैं एकदिन शिकार को ।

करते मृग का पीछा पहुंचे ऋषि कण्व द्वार को ।


तपसीबाल ने सूचित किया नृप!वर्जित यहां मृगया।

तपोभूमि ब्रह्मचारी की,हैं प्राणिमात्र सभी अभया ।


अंदर आ कंद-मूल फल ले,करें स्वीकार आमन्त्रण। 

पालित पुत्री शकुंतला अंदर,महर्षि गए थे निमंत्रण।

     

हो गए थे राजन, मुग्ध बाला के लावण्य रूप में।

हार अपना दिल खो गए थे, वनवासी सौंदर्य जाल में ।


दे परिचय शकुंतला राजर्षि मैं मेनका विश्वामित्र दुहिता ।

कुल परिचय पा भार्या बना गन्धर्वविधि ऋषि पालिता। 


मुद्रिका दे ल

ौटे महल,शापित दुर्वासा से भूले रानी को।

दरबार में देख उसको,बोले आक्षेप करती क्यों मुझको?


देखी हाथ मुद्रिका नहीं, गिर गई थी शची तीर्थाचमन में ।

गर्भस्थशिशु से दुखित को ले गई मेनका स्वर्ग में ।


ले अंगूठी मछुआरे से ,श्रापान्त मे कण्व पुत्री स्मरण हुआ ।

सभा मध्य किये अपमान से नृप मन था छुभित हुआ।


असुरों का कर नाशदेवासुर संग्राम में हेमकूट वास किया ।

कश्यप ऋषि आश्रम सिंह दंताकलन करते बाल दर्श किया ।


बालक से जान माता का नाम अपने उर से भींच लिया ।

उसी शकुनपुत्र सर्वदमन भरत नाम से भारतदेश विख्यात हुआ। 

      



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics