एक ज़माना था
एक ज़माना था
20 साल पहले
कितना हसीन वो
समय था, जब
लोगों में परस्पर
प्रेम बेशुमार था
तेरा - मेरा कुछ नहीं
हमारा अधिकार था
खुशियों में संग झूमते
दुख में संग उदगार था
बहुत ही सुंदर, सहज
लगता ये संसार था
परिवार सबकी नींव थी
समाज सबका आधार था
झगड़ते थे तब भी मगर
झट से मान भी जाते थे
हंसी - ठिठोली करते थे
संग उत्सव भी मनाते थे
बेशर्मी ना इतनी थी
ना स्वभाव में गरमी थी
बड़े - छोटे का लिहाज़ बहुत था
अपशब्द कहने से एतराज बहुत था
दुश्मनी का भी दायरा होता था
घर के बाहर गलियारा होता था
हरियाली चारों ओर होती थी
खुशहाली सराबोर होती थी
इंसान केवल इंसान था
यन्त्र रूप में नहीं ढला था
रखता था संपर्क सभी से....
सबके साथ ही पला - बढ़ा था
आदर भाव रहता था मन में
जगह बनाता था जन - जन में
भक्ति रस से भरा लबालब...
कुछ क्षण दूर रहता था धन से
त्यौहारों का मौसम आता था
घर - घर में खुशियां लाता था
होली, दीवाली, बैसाखी, ईद पर
खूबसूरत माहौल बना देता था
बेसब्री से इंतज़ार सब किया करते थे
रिश्तेदार, पड़ोसी भी घर आया करते थे
खरीददारी तो बेहिसाब होती थी, मगर
दिल के लिफाफे से उपहार दिया करते थे
उस वक़्त टेक्नोलॉजी, पैसा इतना नहीं था
मगर लोगों के पास हाल पूछने का समय था
ना केवल दिखावा बल्कि नेक इरादों का मान था
फरेब से आगे मानवता की सेवा करता अच्छा इंसान था।
