एक और नज़रिया
एक और नज़रिया
बहुत हो लिए आबाद
अब बर्बाद होना है !
जख्म जो दिल पे थे
अब सीने पे आने लगे हैं।
जो लगते थे कभी पास
अब दूर, बहुत दूर जाने लगे हैं
बहुत कर लिया प्यार
अब बस फसाद होना है।
बहुत हो लिए आबाद
अब बर्बाद होना है !
थे जो अपने कभी
वो ही पत्थर बरसाने लगे हैं।
जिन पर था हमें नाज
वो ही शहर जलाने लगे हैं
बहुत समेट ली खुशियां
अब हर कहीं विषाद होना है।
बहुत हो लिए आबाद
अब बर्बाद होना है !
कभी थे हम सर का ताज
आज पांव की धूल से भी
बदतर होने लगे हैं।
जो जमाना कहता था
हमें कमाल
उस ही के लिए
आज सवाल होने लगे हैं।
बहुत जी लिए सुकून से
अब बस जिहाद होना है
बहुत हो लिए आबाद
अब बर्बाद होना है !