एक अमा की रात
एक अमा की रात
वक्त की खामोशी कुछ इस कदर हावी हुई।
जिन्दगी जैसे कोई अधलिखी काँपी हुई।
कुछ है जो वक्त की खुशियों को गिला जाता है।
सुनहले सूरज की किरणों को सिला जाता है।
ये समंदर बड़ी देर से चुप चाप खड़ा है।
उसका नीला पानी भी यूँ ही छला जाता है।
कई दौड़ जो गुजारे थे मैनें आँखों के रास्ते
उन रास्तों पर भी सहारे से चला जाता है।
बिखरी हुई आज वही सिसकती सी आंहे थी।
झुकती हुई आसमान की धुँधली सी बाहें थी।
टपकती सी बुन्दों में आवाज की खामोशी थी।
चकोर की आँखें में विरह की मदहोशी थी।
क्या हुआ था ये वक्त कितना बदल रहा था।
2020 के आगोश में ये कैसा दैत्य पल रहा था।