ए ज़िन्दगी !
ए ज़िन्दगी !
ए ज़िन्दगी! गमों की बारिश में भिगोया है तुमने,
हो सके तो, खुशियों की धूप से सुखा भी देना,
अहल-ए-वफ़ा, गमों से खूब निभाई हमने,
हो सके तो आंसू को मेरे, रुकने की वजह भी देना,
इंतज़ार, उसकी आमद का बड़ी शिद्दत से किया है हमने,
हो सके तो, खुशियों का रुख, कभी, बदल भी देना,
मौसम के साथ, फिज़ा से भी रास्ता बदलने की दरकार बहुत की हमने,
हो सके तो, उसको मेरे घर का भी, कभी पता देना,
ए ज़िन्दगी! नाराज़ मत होना,
कह देना, जो ज़रूरत से लगे कि मांगा कुछ ज्यादा हमने,
हो सके तो, बस कभी मेरी,
भीगी पलकें और खुशी के आंसू, का हिसाब कर देना।