दुःख की सफ़ेद चादर
दुःख की सफ़ेद चादर


दुःख की सफेद चादर से
वह अब भी घबराती है
सुख की सुनहरी सुबह
उसके पास कहाँ आती है !
सुख की नदिया ...
उसके सामने से ही गुजर जाती है
वह सुख के झरने के पानी से
कहाँ प्यास बुझा पाती है !
दुःख के सफ़ेद अश्रु कण ही
वह आँखों में तैराती है !
सुख के सुनहरे मोती ...
वह कहाँ आँखों से झलकाती है !
दुःख धरोहर की तरह....
दामन में वह अपने हर रोज़ पाती है!
सुख के सागर से आनंद के मोती...
वह कहाँ चुन पाती है !