STORYMIRROR

RAJNI SHARMA

Tragedy Thriller

4  

RAJNI SHARMA

Tragedy Thriller

दर्द

दर्द

1 min
244

ना लफ़्ज़ों में,

ना आँखों में,

ना साँसों में,

फिर भी है।


ना आँचल में,

ना दुपट्टे में,

ना बुर्खे में,

फिर भी है।


ना मकान में,

ना बंगले में,

ना बिल्डिंग में,

फिर भी है।


ना मयखाने में,

ना क्लब में,

ना डिस्को में,

फिर भी है।


ना जश्न में,

ना त्योहार में,

ना जलसे में,

फिर भी है।


ना रिश्तों में,

ना मित्रों में,

ना परिवार में,

फिर भी है।


अनकहा सा दर्द,

अनसुना सा दर्द,

कहीं तो है , दर्द,

छलक नहीं पाता ,

है वो बे इंतहा दर्द,

हर मुस्कराहट में।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy