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mohammad imran

Crime

4  

mohammad imran

Crime

दर्द का आलम

दर्द का आलम

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वो दर्द, वो आलम 

मैं कराह रही थी, चिल्ला रही थी 


रोड पे गिर चुकी थी

 वेदना से छट-पटा रही थी


मेरे आँखों से दिखना बंद हो गया था 

मैं इसारो से लोगो को 

मदद के लिए बुला रही थी


वो एसिड जैसे-जैसे 

मेरे चेहरे के माँस को चिर कर अंदर पेवस्त हो रहा था 

मैं बचाओ-बचाओ कहके कितना गिड़-गिड़ा रही थी


मैं बेवस थी, लाचार थी 

किसी के बेरहम नफरत की शिकार थी 


उसे एसिड मेरे मुँह पे, झोकते जरा भी रहम ना आया 

मैं किसी की बेटी थी किसी का परिवार थी 


आखिर ऐसे उसने क्यू कर दाला 

इस जहां में मेरी जिंदगी जहनम बना डाला 


अब जिन्दा रहूँ या मर जाऊँ

मैं हर रोज पूछती हूँ उस खुदा से 


अब तो आईना मेरे दिल को छल्ली कर देता 

मैंने मरने की कोशिस कितने बार किया जहर खाके 


क्यूँकि वो खुले आम अब भी घूमता 

दूसरी लड़कियों को अब भी डराता है कोलर उठा के।


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