दोहरे चरित्र...
दोहरे चरित्र...
इन खुदगर्ज़ दुनियावालों की
दास्तां मैं क्या कहूँ...
जो अक्सर अपना मतलब
निकल जाने के बाद ही
अपना रवैया
बदल दिया करते हैं ...!
ऐसे कैसे इस समाज को
सुधारने के सपने
दिखाया करते हैं
वो खुदगर्ज़ लोग,
जबकि असल ज़िंदगी में
बस अपने मतलब के लिए ही
एक दूसरे से मुसकुराते हुए
दिखावे का रिश्ता
कायम किया करते हैं
वो बेहद खुदगर्ज़ लोग...?
ऐसे लोग हमारे बीच भरे पड़े हैं...
उनको जल्द पहचानकर
एक अच्छी सीख अगर दिया जाए,
तो क्या बात है !!!
ऐसे लोग अपने सिवा
किसी और के नहीं होते...
चाहे जितनी भी
बड़ी-बड़ी बातें कर लें,
मगर असलियत तो ये है कि
वो सिर्फ अपने
मतलब के लिए ही
आपसे दो लब्ज़
मुसकराकर
कुछ नाटकीय अंदाज़ में
इस समाज को
सुधारने के
कोरे सपने दिखाकर
दुसरों के प्रति
छल-कपट-द्वेष-घृणाभाव रखकर
बस बाहरी दिखावे के लिए ही
बेसिरपैर ज़मीन-आस्मां को
एक साथ मिलाने की
खोखली बातें किया करते हैं...
ऐसे होते हैं दोहरे चरित्र के लोग...
क्या आप उनको पहचानते हैं ?