दिलों के बीच की नमी.....
दिलों के बीच की नमी.....
दिलों के बीच की नमी धीरे-धीरे कम हो रही है
इंसानियत की परिभाषा ना जानें क्यों सो रही है?
आदर, प्रेम भाव, सच्चे रिश्ते की पहचान खो रही है
कहीं सच्चाई और नैतिकता अस्तित्व के लिये रो रही है
बेतहाशा मतलबी रिश्तों से रिश्तों की मुलाक़ात हो रही है
वक्त-वक्त की बात मासूमियत भी आज बड़ी बदतमीज हो रही है
निभाने का हुनर तो रहा नहीं रिश्तों की डोर भी नाज़ुक हो रही है
बहुत देखा ज़माना हमने वहीं रिवायतें आज पुरानी हो रही है
बड़े-बुजुर्गो से घर की रौनक थी आज उनकी हिदायतें काफ़िर हो रही है
गुज़रते लमहों के साथ ना जानें क्यों दिलों के बीच नमी खो रही है?