मंज़िल
मंज़िल
शिद्दत से की गयी कोशिशों की
हार हम सह ना सके
माना की मंज़िल-ए-मक़्सूद
हम कभी पा ना सके
मुकम्मल ख्व़ाबों का जहाँ
सजायें थे ज़िंदगी में
पर टूटतें- बिखरतें ख़्वाबों के
बगैर भी हम रह ना सके.
शिद्दत से की गयी कोशिशों की
हार हम सह ना सके
माना की मंज़िल-ए-मक़्सूद
हम कभी पा ना सके
मुकम्मल ख्व़ाबों का जहाँ
सजायें थे ज़िंदगी में
पर टूटतें- बिखरतें ख़्वाबों के
बगैर भी हम रह ना सके.