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Deepali Mathane

Abstract

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Deepali Mathane

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मंज़िल

मंज़िल

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शिद्दत से की गयी कोशिशों की 

हार हम सह ना सके

माना की मंज़िल-ए-मक़्सूद 

हम कभी पा ना सके

मुकम्मल ख्व़ाबों का जहाँ 

सजायें थे ज़िंदगी में

पर टूटतें- बिखरतें ख़्वाबों के 

बगैर भी हम रह ना सके.



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