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Deepali Mathane

Tragedy

3  

Deepali Mathane

Tragedy

वो सपने

वो सपने

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वो सपने गुज़र गये जो अरमान बन के सीने में धड़कते थे

जिन्हें पूरी करने की चाहत में हम दिन रात बेख़याली में तड़पते थे


वो सपने प्यारे से एहसास मेरे पलकों में ज़िंदगी बन के सिमटते थे

गुज़र गये वो सपने जिन्हें हम दिन रात अपने ख़्वाबों में जीतें थे


पूरी करने की जिद में कभी अश्क बन कर बरसते थे

आसमान के तारे बन के जिन्हें पाने को हम तरसते थे


सांसों में हमारी बेतहाशा जो सपने इत्र की तरह महकते थे

बरसो बीत गये उन सपनों में जब हम आसानी से बहकते थे


जिम्मेदारियों के बोझ तलें घुट-घुट कर कभी-कभी दम तोड़ते थे

वो सपने गुज़र गये जो हमें अकेले में भी कभी अकेला ना छोड़ते थे



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