दिल के टुकड़े
दिल के टुकड़े
माता-पिता के बच्चे ही तो हैं दिल के टुकड़े।
वो दिल के टुकड़े भले ही कर लें
अपने माता-पिता के दिल के कितने ही टुकड़े,
लेकिन फिर भी वह माता-पिता के दिल ही में रहते हैं।
उनके दिए दर्द की टीस कितनी भी हो लेकिन,
माता-पिता उन दिल के टुकड़ों को समेट कर
फिर भी दिल के टुकड़ों के साथ ही रहते हैं।
यही रीत है सदा से चली आई इसमें नया क्या?
दिल के टुकड़े भी तो अपने दिल के टुकड़ों की ही सुनते और सहते हैं।
माता-पिता कोई भी हो उनके टुकड़े तो उनके दिल में ही रहते हैं।
