दिल बंजारा गाए
दिल बंजारा गाए
दिल बंजारा गाये, सरहद पे, दिल बंजारा गाये,
सीने में एक हूक सी उठती जाने, किस घङी सांस थम जाए।
पहला प्यार मेरे देश की मिट्टी, जिसका कण-कण प्रियतमा
फुरसत के लम्हों में दिल रूह से पूछे, तुम कैसी हो मेरी प्रिया ।
खामोश हवाओं संग लिख लिख भेजे, कैसी प्यार भरी चिट्ठियां
मां के संग बचपन को बांटे, और फिर सरहद की खट्ठी-मिट्ठियां ।
बेताब निगाहें पल पल बूढ़े बाप को ढूंढ़े, बच्चें सपनों में पलते
जिगर को बांध फिर मोह्पाश सिपाही, वतन की राह पे चलते ।
फिर भी दिल बंजारा गाए……..
प्रश्नचिन्ह सी क्यूं बनी खङी है, देश की सरहद और सीमाएँ
सिहांसन ताज के लिये टूट रही, रोजाना कितनी ही प्रतिमाएँ ।
अटल खङा वो द्वार देश के सामने, बैरी चक्रव्यूह सी श्रृंखलाएँ
रण का आतप झेल, मस्ती, खेल, हाथ कफन लाखों प्रभंजनाएँ।
फिर भी दिल बंजारा गाये……..
क्षमा मांग तोङे मोह का बंधन, नीङ का करता तृण तृण समर्पित
भाल पर मलता मां चरणों की धूरी,तन क्या मन तक करता अर्पित ।
सिंह सी दहाङ, शंखनाद सी पुकार, धूल धूसरित मिट्टी से सुवासित
मार भेदी को बाहुपाश से फिर, कर हस्ताक्षर, नाम शहीदों में चर्चित ।
फिर भी दिल बंजारा गाए.........