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अनूप अंबर

Tragedy Classics

3.8  

अनूप अंबर

Tragedy Classics

दीवाली पर दीया

दीवाली पर दीया

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सिर्फ दीवाली पर नहीं दीया

तुमको हर रोज जलाना है।

नव संभावनाओं को विकसित कर 

तुमको तो चलते जाना है।।


रुकना ना कहीं हार कर तुम,

उम्मीद की लड़ियां सजाना है।

कल्पनाओं के विराट अंबर पर,

तुमको निज पंख फैलाना है।।


कुछ कार्य नहीं ऐसा जग में,

जिसको तुम ना कर पाओ।

सामान्य नही विशेष हो तुम,

खुद को तुम पहचान आओ।।


खुद पर भी तुम करो भरोसा,

अब तुमको सर ना झुकना है।।

खुद के अंदर भी झांक के देखो,

खुद में ही खुद को पाना है।।


जो किस्मत के सहारे रहते है,

वो किस्मत के मारे रहते हैं।

निज कर्मो पर जिसे भरोसा है,

वो आकाश के तारे छूते हैं।।


जिनको कुछ कर जाना है,

वो कब भाग्य का रोना रोते हैं।

जिस तरु को उगाना होता है,

वो पत्थर चीर के उगाते है।।


वो ना किसी के रोके रुकते है,

बस अपने मन की करते है।

जिनको मंजिल की तलब लगी,

वो उसे हासिल कर के रहते हैं।।


वो कब पांव के छाले निरखते है,

कब आराम के ख्वाब सजाते हैं।

वो लोग तो बिरले होते हैं,

जो हर मुश्किल से आंख मिलाते हैं।।


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