दीमक
दीमक
दीमक चट कर गई
मेहनत को मेरी
जिसमें संग्रह थी की गयीं
वो डायरी थीं मेरी
मिट्टी का पुलिंदा बना
सब खा गई डायरी मेरी
एक भी पन्ना न बचा
ऐसी किस्मत मेरी
कभी सोचा न था मैंने
ऐसा होगा कभी
सुरक्षित रखी थी मैंने
शीशे में बंद डायरी
विचार बना जब लिखने को
निकालने को हुआ डायरी
ऐसा झटका लगा जिया को
सुध – बुध खो गई मेरी
याद आते हैं पल वो
जब रची थी कविता मेरी
सोचा था नेट पे डालने को
पर बहुत हो गई देरी
कैसी – कैसी कविता मैंने
रची थी जीवन में मेरी
धोखा खाया ऐसा मैंने
की दीमक खा गयीं डायरी मेरी।