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Devesh Dixit

Tragedy

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Devesh Dixit

Tragedy

दीमक

दीमक

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दीमक चट कर गई

मेहनत को मेरी

जिसमें संग्रह थी की गयीं

वो डायरी थीं मेरी

मिट्टी का पुलिंदा बना

सब खा गई डायरी मेरी

एक भी पन्ना न बचा

ऐसी किस्मत मेरी

कभी सोचा न था मैंने

ऐसा होगा कभी

सुरक्षित रखी थी मैंने

शीशे में बंद डायरी

विचार बना जब लिखने को

निकालने को हुआ डायरी

ऐसा झटका लगा जिया को

सुध – बुध खो गई मेरी

याद आते हैं पल वो

जब रची थी कविता मेरी

सोचा था नेट पे डालने को

पर बहुत हो गई देरी

कैसी – कैसी कविता मैंने

रची थी जीवन में मेरी

धोखा खाया ऐसा मैंने

की दीमक खा गयीं डायरी मेरी



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