तुम ख़ास हो, क्योंकि तुम 'तुम' हो, किसी और की उम्मीदों का पुलिंदा नहीं। तुम ख़ास हो, क्योंकि तुम 'तुम' हो, किसी और की उम्मीदों का पुलिंदा नहीं।
सुरक्षित रखी थी मैंने शीशे में बंद डायरी सुरक्षित रखी थी मैंने शीशे में बंद डायरी