तुम खास हो
तुम खास हो
तुम ख़ास हो,
खुद को दुनिया की बातों में यूँ जाया ना करो।
दुनिया के संग चलने के लिए,
भीड़ का हिस्सा मत बनो।
लोग तो कहेंगे,
हाँ, बहुत कुछ कहेंगे।
तुम क्यों हँसती हो ?
तुम क्यों रोती हो ?
तुम क्यों बाट जोहती हो चाँद की ?
क्यों तुम सूरज के आने से चमक जाती हो ?
हर बात का कारण ढूंढेंगे।
कभी गिराएंगे, कभी उठाएंगे,
तुम्हारी परछाई तक पर उंगली उठाएंगे।
कुछ भी हो, खुद को विचलित होने मत देना,
तुम बढ़ोगी आगे, मुझे यकीं है।
मैंने देखा है तुम्हारे हाथों में,
आसमाँ की लकीरों को।
तुम ख़ास हो,
क्योंकि तुम 'तुम' हो,
किसी और की उम्मीदों का पुलिंदा नहीं।
