धूल का फूल
धूल का फूल
ईश्वर की मैं कोई भूल हूँ,
इसलिए तो इंसानी फूल हूँ।
ईश्वर की डाली से टूटा,
एक बेजान फूल हूँ।
जिसके आँगन में खिला,
उसकी मैं एक भूल हूँ।
वो कहते हैं कि मैं,
एक बदनसीब फूल हूँ।
कांटो से लिपटा,
मैं एक कन्ट फूल हूँ।
इसीलिए तो खुश्बू सुगंध,
विहीन बेमूल हूँ।
मंदिर में माँ के चरणो,
में चढ़े फूलों की धूल हूँ।
इसीलिए शमशान में,
मिलने वाला फूल हूँ।
भवरों ने जिसे है छुआ,
मैं वो फूल हूँ।
छू डाली से गिरा दिया,
मैं वो धूल का फूल हूँ।
मैं तो अपने लिए ही,
एक बहुत बड़ी भूल हूँ ।
इसीलिए ही तो,
धूल में लिपटी धूल हूँ ।
मैं धूल का फूल हूँ।