धुंआ धुंआ ज़िन्दगी
धुंआ धुंआ ज़िन्दगी
सिगरेट के शौक ने उसके
कर दिया अपनों को भी रोगी।
घर में उसके छा चुकी है,
मौन मरघट सी ख़ामोशी।
माता-पिता निपट गए,
गुबार में कश के उसके।
बेटे से प्यार की सजा पा,
वे दोनों तो फना हुए।
पत्नी हमसाया, हमदम है,
पास रहने का खामियाजा,
हर पल हर क्षण भुगतती है,
रह-रहकर खांसा करती है।
बच्चे भी तो बच न पाए,
ध्रूमपान के धुंए से।
फेफड़े काले स्याह हो गए,
नन्हे-मुन्ने नौनिहालों के।
ढक लिया काली छाया ने,
उसके सभी घरवालों को,
एक भूल ने उसकी बदल डाली,
कहानी हंसते-खेलते परिवार की।
स्वयं भी काल कवलित हुआ वो,
धुंआ सब तरफ़ फैला फिर।
लील गया हंसी-खुशी, बुढ़ापा,
बचपन और जवानी सब।